रविवार का सूर्य तो अस्त हो चुका था, किंतु आस्था का सूर्य पूरी गरिमा से चमक रहा था। अगहन शुक्ल पंचमी की तिथि के अनुरूप मौसम में अच्छी खासी ठंड घुली रही, किंतु लोग घर में दुबकने की जगह उत्सव की भावधारा में डुबकी लगाते रहे। लोग मंदिरों की ओर पूरी लीनता से बढ़ते रहे। सीताराम विवाहोत्सव तो युगों से मनाया जाता है, किंतु इस बार रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर में रामलला का विग्रह स्थापित करने की तैयारियों के बीच स्वर्णिम अतीत के आलिंगन को तैयार हो रही रामनगरी आराध्य-आराध्या के परिणयोत्सव के उल्लास का भी आलिंगन पूरे चाव से किया। जानकी महल से निकली बरात मंदिरों में सुबह से ही राम बरात की तैयारी और वैवाहिक रस्म के निष्पादन की छटा बिखरी तो दिन ढलने के बाद बरात का प्रस्थान सामान्य बरात से कहीं अधिक भाव-भव्यता से सज्जित होने से हुआ। जानकी महल से निकली बरात में घोड़े, रथ, बैंड आदि आयाम बरात के सभी अंगों-उपांगों से युक्त थे।
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