“नाम पूछा गया… धर्म देखा गया… कलावा देखा गया… और फिर चला दी गई गोलियाँ… पहलगाम की वादियों में मौत का ऐसा नंगा नाच हुआ, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया।” “पर्यटकों की भीड़ से गुलज़ार रहने वाला पहलगाम अब सन्नाटे में डूबा है। इस बार आतंकियों ने सिर्फ जान नहीं ली… उन्होंने कश्मीर की उम्मीदों को भी लहूलुहान कर दिया है।” “लेकिन इसी अंधेरे में कश्मीरी इंसानियत की रौशनी भी दिख रही है। ये देखिए… कहीं टूर ऑपरेटर्स घायल सैलानियों के लिए खून देने आगे आए…

कहीं गाड़ी लेकर पर्यटकों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने वाले ड्राइवर… कोई मोबाइल फोन दे रहा है, ताकि लोग अपने घर बात कर सकें… तो कोई पैसे खर्च कर रहा है, ताकि कोई भूखा ना सोए।” “ये हैं असली कश्मीरी… जो आतंकियों को नहीं, अतिथियों को देवता मानते हैं। जिन्होंने ये साबित किया कि आतंक से बड़ा धर्म, इंसानियत है।” “इस हमले ने कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर हमला किया है, लेकिन उसके दिल की धड़कन — ‘इंसानियत’ — अब भी ज़िंदा है। और जब तक वो ज़िंदा है, कश्मीर हार नहीं सकता।”