“ये सिर्फ गोलियों की गूंज नहीं थी… ये एक मासूम परिवार की चीख थी। पहलगाम के हरे-भरे मैदानों में जब आतंक ने हमला बोला, एक महिला और उसके बच्चों की दुनिया पलभर में उजड़ गई। आतंकियों ने उनके सामने उनके पति और पिता को गोली मार दी… सिर्फ इसलिए कि वे एक भारतीय थे, एक पर्यटक थे।” “लेकिन इस दर्द के बीच, एक उम्मीद थी — भारतीय सेना। जो ना सिर्फ गोलियों के बीच से उन्हें सुरक्षित निकाल लाई, बल्कि टूट चुके दिलों में भरोसे की लौ भी जलाई।” “वो बच्चे डरे थे, माँ सन्न थी…

लेकिन हमारे जवानों ने न सिर्फ उन्हें बचाया, बल्कि उन्हें गले लगाकर कहा — ‘आप अकेले नहीं हैं, पूरा देश आपके साथ है।'” “इस परिवार का दुःख हम सबका दुःख है। लेकिन जिस साहस से उन्होंने सामना किया, और जिस फर्ज़ से सेना ने उन्हें थामा — वो हर भारतीय के दिल में हमेशा ज़िंदा रहेगा।