ये दृश्य किसी दूसरे देश के नहीं हैं… ये भारत के हैं। जहाँ हिन्दू—जो इस देश का बहुसंख्यक समाज है— आज अपने ही देश में शरणार्थी बना बैठा है। मुर्शिदाबाद से डरकर भागे ये हिन्दू परिवार, अब खुले आसमान के नीचे, सरकारी स्कूल में अंधेरे में भोजन कर रहे हैं। ना सुरक्षा, ना सहारा… सिर्फ डर… और एक सवाल – क्या इस देश में अब बहुसंख्यक होना भी अभिशाप बन गया है? इनके पास घर है, ज़मीन है, पहचान है… लेकिन आज इनका सब कुछ होते हुए भी ये बेघर हैं। क्यों? क्योंकि कुछ कट्टरपंथी

मानसिकताओं को इनकी उपस्थिति बर्दाश्त नहीं! ये सिर्फ एक समुदाय की बात नहीं है… ये पूरे भारत की आत्मा का सवाल है। क्या अब हमें अपने ही देश में डर कर जीना होगा? कब तक बहुसंख्यकों की चुप्पी इन स्थितियों को और ताक़त देती रहेगी?