
यह घटना भी बेहद चिंताजनक और सामाजिक असमानता का एक और उदाहरण है। उत्तर प्रदेश की हेमा कश्यप के साथ हुआ यह अन्याय यह दिखाता है कि कैसे कभी-कभी समाज और सरकारी व्यवस्था के भीतर का भेदभाव और पूर्वाग्रह व्यक्ति की जिंदगी पर गहरा असर डालते हैं। हेमा के साथ जो हुआ, वह केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि हमारे समाज में व्याप्त जातिवाद और भेदभाव की असल तस्वीर है। जाति प्रमाण पत्र के लिए जो शर्तें रखी गईं, वे साफ तौर पर अनुचित और भेदभावपूर्ण हैं। दुपट्टा पहनना या किसी की पोशाक पर आधारित फैसले से न केवल एक व्यक्ति की पहचान को नकारा जाता है, बल्कि यह उस व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन भी है। हेमा को NEET का फॉर्म न भर पाने का नुकसान हुआ, जो उसकी शिक्षा और भविष्य के लिए एक बड़ी रुकावट है। यह घटना यह बताती है कि सामाजिक और जातिगत भेदभाव सिर्फ आर्थिक स्थिति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, रोजगार और समग्र विकास के अवसरों को भी प्रभावित करता है। ऐसी घटनाओं के खिलाफ हमें एकजुट होकर आवाज़ उठानी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि हर व्यक्ति को समान अवसर मिलें, बिना किसी भेदभाव के।