शनिवार की शाम, बाघमारा के कतरास बाजार में बरस रही थी आग—ना आसमान से, ना धरती से, बल्कि उन जलती मशालों से जो मजदूरों के सब्र का बाँध टूटने के बाद उठी थी।जियो मस्क माइंस एंड मिनरल प्राइवेट कंपनी के करीब डेढ़ सौ मजदूरों ने अपनी चालीस लाख रुपये की बकाया मजदूरी के लिए मशाल जुलूस निकाला। जदयू नेता दीपनारायण सिंह के नेतृत्व में भगत सिंह चौक से शुरू हुआ यह जुलूस कंपनी के मुख्य गेट पर पहुंचकर सभा में तब्दील हो गया। दीपनारायण सिंह ने मजदूरों को भरोसा दिलाया कि उनकी हर एक पाई वापस दिलाई जाएगी। उनका कहना था कि जब कंपनी को बैंक ने नीलाम कर दिया और नए प्रबंधन ने इसका प्रभुत्व संभाल लिया, तो उन्हें मजदूरों के अधिकारों की अनदेखी करने का कोई हक नहीं है। इस सांकेतिक मशाल जुलूस के जरिए मजदूरों ने साफ कर

दिया कि वे अपने हक की लड़ाई में पीछे हटने वाले नहीं हैं। अगर जल्द ही उनकी मजदूरी नहीं चुकाई गई, तो आंदोलन और तेज होगा। मजदूरों के समर्थन में बैंक और सक्षम अधिकारियों को भी सूचित किया जा चुका है। यह आंदोलन केवल पैसे की लड़ाई नहीं, बल्कि मजदूरों के सम्मान और हक की लड़ाई बन चुका है। मशालों की यह रोशनी सिर्फ सड़कें नहीं, बल्कि मजदूरों के दिलों में जगी उम्मीद को भी रोशन कर रही थी—एक उम्मीद, जो न्याय मिलने तक बुझने वाली नहीं थी।