जहां सभी पूजा पंडालों में विभिन्न विभिन्न थीम और अलग अलग चाली पर मां दुर्गे की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है,तो वहीं दूसरी ओर जीतपुर पूजा पंडाल में हर वर्ष एक ही चाली और पारंपरिक रूप से मां दुर्गा की प्रतिमा बनाई जाती है और मैया रानी की पूजा अर्चना की जाती है. जीतपुर गांव में पूजा की शुरुआत विगत वर्ष 1953 में की गई थी,पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि यहां पूजा की शुरुआत रेलवे चालक स्व. बनवारी महतो द्वारा की गई थी. सदस्यों ने बताया कि जब गोमो चंद्रपुरा रेलखंड स्थित दामोदर नदी पर राजा बेड़ा पुल का निर्माण किया गया था तो पुल पार करने की पहली ट्रेन स्व. बनवारी महतो को ड्यूटी मिली थी,जिस दौरान वह अपनी पत्नी को भी उस ट्रेन पर बैठाकर ट्रेन को गंतव्य तक ले गए थे,उन्होंने कहा था
कि अगर राजा बेड़ा पुल पर कोई हादसा हुआ तो हम दोनो पति पत्नी साथ रहेंगे और अगर पुल से ट्रेन को सही सलामत पार कर लिए तो जीतपुर में दुर्गा पूजा हर्षोल्लास मनाएंगे. राजा बेड़ा पुल को सही पार कराने के बाद जीतपुर गांव में उन्होंने पहली बार दुर्गा पूजा की स्थापना की थी,जिसके बाद से जीतपुर में दुर्गा मंडप की स्थापना कर सामुहिक रूप से दुर्गा पूजा मनाई जाती है. पूजा के दौरान काफी संख्या में लोग आते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं,पूजा के समय भंडारे का आयोजन किया जाता है जहां हजारों की संख्या में लोग मां दुर्गे की भोग को ग्रहण करते हैं.