रानीगंज – बीमारियों से अनजान बच्चे कचरे के ढेर में अपना भविष्य ढूंढऩे को मजबूर बचपन

रानीगंज – बीमारियों से अनजान बच्चे कचरे के ढेर में अपना भविष्य ढूंढऩे को मजबूर बचपन

लाख सरकारी दावे के बावजूद बच्चे पढ़ने की उम्र मे पढ़ने के बजाय कचरे के ढेर मे अपना भविष्य ढूंढऩे को मजबूर है। ऐसा ही एक दिल दहलाने वाला दृश्य कैमरे मे कैद हुआ। जहां इस कड़ाके की ठंड से बचने के लिए छोटे-छोटे बच्चे कचरे के ढेरों मे अपने खातिर कपड़े और खाने पीने के सामान ढूंढ़ते हुए नजर आए। यह घटना रानीगंज विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत मंगलपुर इलाके की है। जहां के ईट भट्टो मे काम करने वाले छोटे छोटे बच्चे शहर व हाईवे पर बने हुए होटलों से फेके जाने वाले कचरे के ढेरों से अपने पहने के लिए कपड़े व खाने पीने सामान चुनने को मजबूर है। आखिर करे तो करे क्या ये गरीब बच्चे इनका जीवन इसी कचरे की ढेर पर टिकी हुई है।कूड़े के ढेर में कबाड़ चुनने के चलते हुए गंभीर बीमारियों की चपेट में भी आ जाते हैं। लेकिन वह करें तो क्या करें क्योंकि उनके पास कोई दूसरा साधन भी तो नहीं है। कूड़े के बीच से कपड़ा,लोहा,शीशा व प्लास्टिक की बोतलें, लकड़ी के सामान व कागज आदि चुनने वाले यह बच्चे सामाजिक व प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार हैं। सरकार बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित होने का दावा कर करती है.लेकिन सचाई कुछ और व्यक्त कर रही है।सुबह से शाम तक कचरे के ढेरो में अपना भविष्य ढूंढऩे को मजबूर है इनका बचपन,गरीबी के कारण ये बच्चे खेलने कूदने व पढ़ाई लिखाई का समय कूड़ा कचरा बीनने में बिता देते है। एक ओर जहा सरकारी आंकड़ों में सब कुछ दुरुस्त है और जहा तक शिक्षा के अधिकार अधिनियम की बात है तो सरकारी आंकड़ों में सब कुछ दुरुस्त है। यानी ऐसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं या फिर कूड़ा कचरा चुनने में ही अपना दिन व्यतीत कर देते हैं। वे भी सरकारी स्कूलों में नाम अंकित है। उनके नाम पर भी सरकारी सुविधाएं उठाई जाती है। यानी सरकारी आंकड़ों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम बिल्कुल दुरुस्त है,लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही है। इन बच्चों से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वह पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिला के रहने वाले है उनके माता पिता रानीगंज क्षेत्र के मंगलपुर इलाके स्थित ईट भट्टो मे काम करते है। बच्चों ने आगे बताया कि अपनी उम्र के अन्य बच्चों को सुबह स्कूल जाते हुए देख कर अपने आप को भी स्कूल में पढऩे तथा उनके साथ खेलने कूदने की सोचते है, लेकिन परिवार की माली हालात ठीक नहीं है जिस कारण कूड़ा कचरे के ढेरों से सुबह से शाम तक खाली बोतलें,प्लास्टिक का सामान व लोहे का सामान सहित अपने किये पहने के लिए कपड़े बीनते है।

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