समूचा विश्व वर्तमान में आपदा की चुनौतियों से जूझ रहा है। फिर चाहे वह पर्वतीय क्षेत्र हों अथवा तटीय या अन्य क्षेत्र, सभी की अलग तरह की दिक्कतें हैं। यही नहीं, आपदाएं किसी भी मौसम में कहीं भी आ जा रही हैं। ऐसे में आपदा की चुनौतियों से निबटने को हर स्तर पर प्रभावी रणनीति की जरूरत है। छठवें विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन में जारी घोषणा पत्र में भी हिमालयी व पर्वतीय राज्यों की चुनौतियों से पार पाने को ऐसी तमाम संस्तुतियां की गई हैं। मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड में यहां की समस्याओं के समाधान की राह सुगम करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। आपदा में 119 लोगों की गई थी जान विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड और आपदा का मानो चोली-दामन का साथ है। राज्य गठन के बाद से अब तक के परिदृश्य को देखें तो हर साल ही प्राकृतिक आपदाओं में जान-माल की क्षति झेलनी पड़ रही है। इस वर्ष भी जनवरी में जोशीमठ में भूधंसाव की आपदा के बाद से राज्य अब तक लगातार ही आपदा से जूझ रहा है। वर्षाकाल में ही अतिवृष्टि व भूस्खलन ने जानमाल को भारी नुकसान पहुंचाया और आपदा में 119 व्यक्तियों की जान चली गई, जबकि 50 के लगभग घायल हुए और 16 अभी लापता हैं। इसके अलावा पशुधन, भवन समेत सार्वजनिक संपत्ति को लगभग 1400 करोड़ की क्षति की आंकी गई।
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