ग्राम नीलकंठ में झिरी माता के नाम से है प्रसिद्ध धार्मिक स्थल, दूरदराज से पहुंचते है श्रद्धालु। बेड़ियां – मप्र का निमाड़ अंचल अपने आप में अनुठा क्षेत्र है। जहां पुण्य सलिला नर्मदा नदी एक तरफ़ धार्मिक महत्व के लिए विशेष है। साथ ही साथ टीम दूसरी ओर किसान वर्ग व तटो पर बसे ग्रामीणो के लिए जीवनदायिनी है। विंध्य और सतपुड़ा की गोद में बसा निमाड़ अपने धार्मिक स्थलों, विभिन्न व्यवसाय, सामाजिक रीति रिवाज, लोक पर्वों, ऐतिहासिक धरोहरों के साथ मान्यताओं को अपने में समेटे हुए है। वहीं कई धार्मिक व आध्यात्मिक धरोहर लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। ऐसा ही एक गांव जहां प्राकृतिक झिरी है। जिसे माता की झिरी व देव झिरी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां के कुंड के पानी से स्नान करने से कई बिमारियों व बाहरी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। जिसके चलते यहां श्रद्धालुओं की भीड उमडती है। शहर से करीब 20 किमी दूर ग्राम नीलकंठ में देव झिरी के नाम से प्रसिद्ध स्थान है। जो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। पूर्व में यहां बडी संख्या में श्रद्धालु इस झिरी के पानी से स्नान के लिए आते थे। धीरे-धीरे यहां संख्या कम हो गई लेकिन ग्रामीणों के लिए इसका महत्व आज भी उतना ही है। यहां माता का स्थान बताया जाता है। ग्रामीण भुवानी सिंह (70) व प्यारसिंह (62) ने बताया हमारे पूर्वजों में भी इस झिरी को लेकर मान्यता रही है। करीब 250 से 300 वर्ष पुरानी है। प्राकृतिक रुप से यहां एक गड्ढे में से पानी निकलता था। जिसका महत्व धीरे-धीरे बढता चला गया। जिसके बाद ग्राम की एक महिला ने अन्य ग्रामीणों की सहायता से यहां पर पक्का निर्माण कर कुंड बनाया। जो करीब 6 फिट गहरा है। साथ ही उसके आसपास पक्का निर्माण कराया गया। जिसके पानी में स्नान करने से बहुत सी परेशानियों से निजात मिलती है। जितना महत्व पानवा, सगुर भगुर व बडगांव में स्थित झिरी का है उतना ही महत्व यहां का भी है। विभिन्न रोगों से मिलती है निजात, दूर दराज से आते हैं श्रद्धालु ग्राम के ताराचंद ने बताया वर्षो से इस स्थान को यहां पर देखते आ रहे हैं। पहले यहां पर आने वाले श्रद्धालु ठीक होने या मन्नत पूरी होने पर भोज का आयोजन करते थे या जोडे जिमाते थे। कई बार ग्राम में जोडे भी कम पड जाते थे। जिस पर अन्य गांवो से जोडो को बुलाना पडता था। दूर दराज से लाेग यहां आते थे। मंगलवार का दिन विशेष माना गया है। साथ ही माता का स्थान होने से नवरात्रि में विशेष महत्व रहता है। यहां के पानी से स्नान करने से बाहरी बाधा, लकवाग्रस्त मरीज, सफेद दाग, कुष्ठ रोग, मानसिक बिमारियों सहित अन्य चर्म रोगो से मुक्ति मिलती है। यहां मन्नत पूरी होने के बाद लोग भोजन या कडावे का प्रसाद वितरित करते हैं। वैशाख माह में यहां ज्यादा भीड जुटती थी। यहां की मिट्टी को भी किसी अन्य पानी में मिलाकर स्नान किया जाएं तो भी उसका उतना ही महत्व है। नदी के पास स्थिति होने से नदी का पानी भी इस कुंड में आता है। बारिश के मौसम में यही स्थिति बनती है। आज भी पानी की धार इसमें चलती रहती है। यहां पर ग्रामीणों ने पाइप लाइन के माध्यम से झिरी में पानी की व्यवस्था की है। कुंड में हमेशा पानी भरा रखा जाता है। जिससे बाहर से आने वाले लोगों को हमेशा पानी मिले। क्योंकि इस स्थान का महत्व है। इस स्थान का पानी अनेक रोगों में कारगर है। साथ ही बाहर से आने वाले लोगों के लिए यहां पर रुकने की व्यवस्था भी नि:शुल्क है। स्थान के जीर्णोद्धार के साथ नदी पर घाट बनाने की मांग देव झिरी के पास से चीतल नदी बहती है। ग्रामीणों ने बताया यहां पर दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं। साथ ही आसपास के करीब 15 से 20 गांवो के ग्रामीण लगातार यहां आते रहते हैं। यहां की व्यवस्था ग्रामीण ही करते हैं। लेकिन यहां साफ सफाई का अभाव है। साथ ही नदी के पानी से कटाव भी होता है। इसके लिए यहां पर घाट निर्माण किया जाएं। साथ ही कुंड से नदी तक जाने के लिए सीढियो का निर्माण हो जाएं। जिससे इस स्थान की पवित्रता हमेशा बनी रहे। नदी का मटमैला पानी भी झिरी में नहीं जा पाएगा। अधिकारी व जनप्रतिनिधि इस क्षेत्र के लिए निर्माण कार्य की सौगात दे। ग्रामीणों ने बताया आधुनिक युग में लोगों को विश्वास जहां डॉक्टरो पर ज्यादा रहता है लेकिन कई लोगाें की आस्था आज भी इस स्थान में हैं।
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