चलिए अब आपको एक ऐसी तस्वीर बताते हैं जो मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले की जी हां वैसे तो मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने गेहूं उपार्जन केंद्र को लेकर तमाम तरह के दिशा निर्देश समस्त प्रशासनिक अमले को दे रखे हैं। किन्तु अन्नदाता किसान को किसी भी तरह से परेशानी का सामना ना करना पड़े ओर समय रहते ही गेहूं खाली पड़े गोडाउन में ले जाया जाए साथ ही वहां से परिवहन की व्यवस्था समुचित करते हुए नियत स्थान पर गेहूं को पहुंचाया जाए पर बावजूद इसके जो तस्वीर आप देख रहे हैं। वह बिल्कुल उलटी है तो चलिए आपको दिखाते हैं! उज्जैन जिले के इलाकों में की गई हड़ताल की तस्वीरें जिसे देख आप भी कहेंगे की आखिर हो क्या रहा है। वीओ: 1 आपको बता दें कि उज्जैन जिले में 7 विधानसभा क्षेत्र पड़ती है जहां की पूरी जिम्मेदारी एडमिनिस्ट्रेशन यानी प्रशासनिक अमले की होती है गेहूं उपार्जन केंद्रों की और साथ ही इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है वह हाउसिंग बोर्ड की क्योंकि सबसे महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में यही टीम काम करती है। और इन्हीं के अनुरूप जो किसान अपने खेतों से अनुगा कर गेहूं उपार्जन केंद्रों पर अपनी फसल बेचने आते हैं यहीं से पूरा माल परिवहन के द्वारा अन्य राज्यों या अलग-अलग देशों में पहुंचाया जाता है जिसे भारत की अर्थव्यवस्था से काफी अहम जोड़कर माना गया है। पर सबसे बड़ा सवाल कि जो किसान अपनी फसल उगा कर जिन उपार्जन केंद्रों पर पहुंचता है उसके लिए उसे 3 से 6 दिनों तक अपने ट्रैक्टर ट्रॉली को लेकर कतार में खड़ा रहना पड़ता है और ऊपर से जब बेमौसम बारिश हो जाए तो उसकी उपज खराब होती फिर भी वह आस लगाए जब उत्पादन केंद्रों पर पहुंचता है तो वहां भी उसे इस बात से निराशा होती है की व्यवस्था तो सरकार ने बनाने के लिए प्रशासन को निर्देशित किया लेकिन आज भी कहीं ऐसी कमियां है जो हम आपको बताने जा रहे हैं। वीओ: 2 दरअसल इस पूरे मामले को लेकर जब उज्जैन जिले के महिदपुर रोड़ क्षेत्र में मिडिया की टीम पहुंची तो वहां पर हैरत भरी तस्वीर सामने आई सबसे पहले तो महिदपुर रोड़ से महज 2 किलोमीटर दूर 2 से तीन गोदाम जो पूरी तरह से वीरन पडे हुआ है हालांकि बताया जाता है कि सत्ताधारी नेता के दबाव के चलते प्रशासन ने इस बार उन गोदाम पर उपार्जन केंद्र बना ही नहीं और इसी के कारण यहां पर रहने वाले किसानो को राहत है लेकिन शासन की योजना से बनाये गये गोदाम जो केवल राजनीति दुवेष्ट के चलते निर्दलीय प्रत्याशी होने का खामयाजा भुगत रहे है दोनों पार्टियी के नेताजी अब दिनेश जेन बॉस की टांग खीचने में लगे है बात यही तक खत्म नही होती उससे पहले भी बीजेपी के कई सत्ता धारी नेताओ ने मिलकर 33 करोड़ का एक प्रकरण बनाया था जिस पर स्टे मिला हुआ है तभी 2013 से गिट्टी प्लांट भी बंद है जो पिछले 13 साल से बंद है ओर भी कई तरह के प्रकरण राजनीतिक दबाव में बनाये गए है और जो भी सत्ताधारी नेताजी के साथ चल रहे है वो चाहे बीजीपी हो या कांग्रेस सबके काम धाड़लल्ले चल रहे है और जो विरोधी लोग है उन पर दोनों पार्टिय कहर बरपा रही ये कोई पहला मामला नही है चाहे महाकाल वेयर हाउस हो या फिर पार्शवनाथ सत्ताधारी जो सत्ताधारी नेताजी के साथ ही उनके गोदाम धाड़लल्ले से चल रहे है और जो विरोधी है उनके राजनीति दबाव बनाकर उपार्जन केंद्र बनाए ही नही ऐसे कहते है कि राजनीति का फायदा उठाना अब देखना दिलचस्प होगा कि जिम्मेदार अधिकारी महोदय इस पर किया कार्यवाही करते है वीओ: 4 और इसी क्षेत्र के एक सवेरा उसकी तस्वीर हम आपको दिखाते हैं जहां पर पूरी तरह से गोडाउन फूल हो चुका है और बाकी जो अनाज की बोरियां खेतों पर दिखाई दे रही है यह बेमौसम बारिश से भीग चुकी है अब बड़ा सवाल कि एक तरफ तो शासन के निर्देश के अनुरूप प्रशासन ने उसको भर तो रहै है लेकिन खेतों में लाखों टनों के अनुरूप गेहूं की बोरियां भीकती है इसके लिए प्रशासन क्या कर रहा है इसको लेकर भी जब हमने पड़ताल की तो चौंकाने वाली बात सामने आई कि जो वेयरहाउस यानी गोडाउन पूरी तरह से भर चुके हैं उन के बाहर जो माल रखा होता है उसे परिवहन के लिए रखा जाता है लेकिन सबसे अहम बात की उस परिवहन के लिए भी उन हजारों गेहूं की बोरियों को 8 से 10 दिन तक यहीं पटक कर रख दिया जाता है वह भी रेक लगेगी तभी यहां से परिवहन के द्वारा इन्हें अन्य जगह पर भेजा जाएगा लेकिन इस बीच बारिश हो जाती है और खेतों में रखी हुई तमाम बोरिया अपनी बदहाली के आंसू आती है तो क्या समझे की प्रशासन का नुकसान किसान की पीड़ा या बारिश की मार या सत्ताधारी नेता के प्रभाव के चलते बिगड़ी हुई यह व्यवस्था। वीओ: 5 अब सबसे बड़ा सवाल उपार्जन केंद्रों पर भरपूर गेहूं की बोरियों की आवाज पर गोडाउन है खाली है और सर पर मंडराता बारिश का कहर। इसी पूरी बात को लेकर जब स्थानीय एसडीएम से चर्चा की गई तो उन्होंने क्या कुछ कहा आप खुद सुन लीजिए।
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