सीधी – बनास नदी में रेत उत्खनन व परिवहन के मामले में जांच कार्यवाही से क्यों बच रहा वन विभाग?

संजय टाइगर रिजर्व से सटे एवं जिले की सीमावर्ती बनास नदी में एक तरफ जहां रेत उत्खनन एवं परिवहन के मामले को जैसे ही मीडिया द्वारा समाचार पत्र में प्रकाशित किया गया तो जिला कलेक्टर एवं जिला खनिज अधिकारी सीधी द्वारा इसे गंभीरता से लेते हुए शीघ्र जांच कराकर कार्यवाही किए जाने का आस्वासन दिया गया, ठीक इसी तरह वन विभाग की भी प्रमुख और प्राथमिक जिम्मेदारी है की वन सीमा पर उत्खनन व परिवहन को लेकर ठोस कार्यवाही करे लेकिन उसके द्वारा जांच कार्यवाही करने की तो बात दूर वन परिक्षेत्राधिकारी खुद को बचते बचाते नजर आ रहे हैं। जिससे उनकी भूमिका संदिग्ध नजर आती है।जिस पर सवाल उठना स्वाभाविक है। सूत्रों की माने तो सीधी एवं शहडोल जिले की सीमा को बनाती बनास नदी सदियों से अविरल धारा के साथ बहती रही है। उसी नदी में रेत कारोबारी द्वारा बड़ी-बड़ी मशीनें जेसीबी एवं पोकलैंड के जरिए रेत उत्खनन कर हाईवा डंपर से परिवहन किया जा रहा था।इतना ही नहीं शहडोल जिला के साथ सीधी जिले की सीमा क्षेत्र से भी रेत का उत्खनन परिवहन शुरू होने लगा था।तब स्थानीय मीडिया एवं जिला मीडिया कर्मियों द्वारा मामले को लेकर खबर प्रकाशित की गई। जिसमें कलेक्टर सीधी एवं खनिज अधिकारी सीधी के द्वारा शीघ्र जांच कार्रवाई की बात कही गई है। लेकिन रेंजर मझौली द्वारा आज दिनांक तक मौके में न पहुचना उन्हें संदेह के दायरे में खड़ा कर रहा है। स्थानीय ग्रामीणों की माने तो नदी के जिस क्षेत्र में रेत खनन कराया जा रहा है वह वन विभाग सामान्य के अंतर्गत आता है जहां सीमा चिन्ह के रूप में विभाग द्वारा मुनारा बनवाए गए हैं। ऐसे में परिक्षेत्र अधिकारी द्वारा मीडिया को दिए गए कथन में कहा गया था कि तत्काल जांच कर प्रतिवेदन दिया जाएगा। लेकिन कथन देने के 5 दिन बाद भी वन परिक्षेत्राधिकारी का जांच कार्यवाही न करना उन्हें संदेह के दायरे में खड़ा करता है। जिस पर लोगों द्वारा तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। क्यों मौन साधे हुए है पूरा चैनल विभागीय सूत्रों के अनुसार वन विभाग में वन सुरक्षा के लिए वन सुरक्षा समिति गठित की जाती है फिर चौकीदार, वनरक्षक,सहायक परिक्षेत्राधिकारी फिर परिक्षेत्राधिकारी पूरे के पूरे चैनल में रहते हैं। लेकिन बनास नदी में वर्षो से चल रहे रेत उत्खनन एवं परिवहन के मामले में सभी जिम्मेदारों का मूक दर्शक होना सवाल खड़ा करता है कि कहीं पूरा चैनल रेत कारोबारी के सामने नतमस्तक तो नहीं है। शिगूफा छोड़ कर नटवरलाल फैला रहा भ्रम बनास नदी का सीना छलनी होते देख मीडिया द्वारा नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए मिशन बनाकर अखबारों व पोर्टलों में समाचार प्रकाशित किए जा रहे हैं, ताकि जांच कार्यवाही हो और रेत उत्खनन पर रोक लगे इस मानसिकता के साथ समाचार प्रकाशित कर वास्तविकता सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है वहीं स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार जिस नटवरलाल ने पहले रेत कारोबारी से मोटी रकम लेकर मझौली तहसील के जिम्मेदार विभागों के अधिकारी एवं निर्वाचित प्रतिनिधियों को मैनेज करने के नाम पर मोटी रकम लेकर ठेकेदार बना है जब खबर प्रकाशित की गई तो उसके कारनामे का भी हवाला दिया गया था।ऐसे में स्थानीय ग्रामीणों की माने तो उसके द्वारा फिर से नया शिगूफा छोड़कर भ्रम फैलाया जा रहा है कि पूरा जिला प्रशासन व पत्रकार मैनेज हो गए हैं। सब के साथ समझौता हो गया ऐसे में समझौता किसके साथ हुआ यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन परिक्षेत्र अधिकारी का ऐसे गंभीर मामले में जांच करने में हीला हवाली करना नटवरलाल की बातों की पुष्टि करने जैसा लग रहा है। जिसकी लोग अपने अपने स्तर से चर्चा भी कर रहे हैं। नीलेश द्विवेदी रेंजर मझौली अभी मौके पर नही पहुंच पाया हूँ समय निकालकर जाँच कार्यवाही की जाएगी।

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