आज दिनांक 24/3/2023 को सरहुल जोकि आदिवासियों का पावन पर्व है हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सखुआ के पेड़ के नीचे सरना मा को विधिवत पूजा की गई पाहुन सुरेश प्रसाद सोरेन ने सखुआ का फूल एवं पत्ता महिलाओं के आंचल में दिया गया ,पुरुष के कान में लगाया गया ,मुर्गा के बली की बलि दी गई ,चना का प्रसाद चढ़ाया गया ,प्रकृति के साथ चलने वाला सामाजिक आदिवासी कहलाया जिनको उनके पूर्वजों ने प्रकृति रक्षा हेतु सरहुल त्योहार प्रदान किया इस त्योहार के जो भी विधि विधान है तत्कालिक है जिसे आदिवासियों समाज परंपरागत रूप से निभाते आ रहे हैं मूलतः इसकी रक्षा सर्वोपरि है आदिवासी इसे नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। आदिवासी परंपरा के अनुसार धरती और सूर्य के परिणय सूत्र के पश्चात ही प्रजनन के पदुर्भाव हुआ ।इन्हीं मान्यताओं को सरहुल पर्व साथ जोड़ा गया है मुख्य अतिथि राज सिन्हा ने सभी को सरहुल पर्व की बधाई देते हुए कहा सरहुल प्रकृति से जुड़ने का संदेश देता है मेजर उमेश उरांव ने कहा कि हमें प्रकृति से जुड़े रहने की जरूरत है समिति के अध्यक्ष हेंगू उरांव ने कहा कि सरहुल में सखुआ फूल व पत्ते को विशेष महत्व होता है।
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