आगरा के शाहगंज क्षेत्र में अखंड भारत हिंदू महासंघ द्वारा निकाली गई तिरंगा यात्रा विवादों में आ गई है। इस यात्रा के दौरान ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ की जगह ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए गए। अब संगठन के अध्यक्ष माफी मांग रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ माफीनामा ही काफ़ी है? बीते समय में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ मुस्लिम युवकों पर नारेबाज़ी को लेकर NSA और UAPA जैसी कठोर धाराएं लगाई गईं, बुलडोज़र की मांग उठी, और तुरंत गिरफ्तारियां हुईं।

उदाहरण के तौर पर ‘वाजिद भाई जिंदाबाद’ जैसे नारों को मीडिया ने पाक समर्थक बताया और युवकों को निशाना बनाया। लेकिन यहां, वीडियो सबूत होने के बावजूद कोई पुलिसिया कार्रवाई नहीं हुई, न ही कोई जांच या उच्चस्तरीय संज्ञान लिया गया। यह दोहरी मानसिकता पर सवाल उठाता है — क्या कानून सबके लिए एक जैसा है?