आज उदयीमान सूर्य की साधना के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व संपन्न हो गया |

आज उदयीमान सूर्य की साधना के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व संपन्न हो गया |

देवघर जिले के चांदपुर प्रखंड अंतर्गत ग्राम ग्वाल बदिया में लोक आस्था का महापर्व छठ बड़े धूमधाम से मनाया गया। छठ पूजा, जो लोक आस्था का एक प्रमुख पर्व है, आमतौर पर दीपावली के छह दिन बाद प्रारंभ होती है. लोग इस महापर्व की प्रतीक्षा बड़े उत्साह से करते हैं. हिन्दू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है. मुख्य रूप से यह पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाई जाती है, लेकिन अब यह देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों में भी व्यापक रूप से मनाई जाने लगी है. यह त्यौहार चार दिन तक चलने वाला महापर्व छठ व्रत बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है.छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्लपक्ष षष्ठी तिथि को मनाया जाता है छठ को कई नाम से जाना जाता है कही छठी मैया,षष्ठी व्रत ,छठ व्रत के नाम से जाना जाता है.यह त्यौहार पुरुष तथा स्त्री दोनों मिलकर व्रत को करते है छठ व्रत करने से सभी मनोकामना पूर्ण होता है.बहुत ही कठिन व्रत होता है इस त्योहार में सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है. लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का पहला दिन नहाए खाए से शुरू होता है दूसरा दिन खरना पूजा के नाम से जाना जाता है। इस दिन छठी मैया के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार खरना का प्रसाद बिल्कुल साफ सुथरे तरीके से तैयार किया जाता है।

छठ पूजा का व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन माना जाता है। इस वर्ष छठ के महापर्व की शुरुआत 05 नवंबर से हो गई है। छठ का पहला दिन नहाय खाय शुरू हुआ। पीटीपीएस पतरातू के पुरोहितों ने बताया कि इसमें मान्यता है कि जो महिलाएं छठ के नियमों का पालन करती हैं, छठी माता उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। छठ पूजा में सूर्य देव का पूजन किया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है। छठ पर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है। खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण। खरना के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाने की परंपरा है। खरना के दिन छठव्रती पूरे दिन व्रत रखती हैं। इस दिन छठी माता का प्रसाद तैयार किया जाता है। इस दिन गुड़ की खीर बनती है। खास बात यह है कि वह खीर मिट्टी के चूल्हे पर तैयार की जाती है। प्रसाद तैयार होने के बाद सबसे पहले व्रती इसे ग्रहण करती हैं। उसके बाद इसे बांटा जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। इसके अगले दिन सूर्यास्त के समय व्रती लोग नदी और घाटों पर पहुंच जाते हैं। जहां डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दौरान सूर्यदेव को जल और दूध से अर्घ्य देते है। साथ ही इस दिन व्रती छठी मैया के गीत भी गाती हैं।इसके अगले चौथे दिन उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं।

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