छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना के रूप में मनाया गया, जिसमें व्रती महिलाओं ने संध्या काल में पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर उन्होंने भगवान सूर्यदेव और छठी मइया को शुद्धता, पवित्रता और श्रद्धा के साथ प्रसाद अर्पित किया। खरना पूजा के बाद,छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास भी प्रारंभ हो गया है, जो संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए रखा जाता है। खरना पूजा में व्रतियों ने विशेष रूप से खीर, गुड़ से बनी रोटी, और घी में बनी पूरियों को प्रसाद के रूप में तैयार किया। इन प्रसादों का पवित्र भाव से वितरण किया गया, जिसमें व्रतियों ने प्रसाद को पहले स्वयं ग्रहण किया और फिर इसे परिवार के सदस्यों, मित्रों और समाज के अन्य लोगों में बांटा। प्रसाद के साथ परिवार और समाज के लोगों ने इस पर्व में सम्मिलित होकर एकता, श्रद्धा और समर्पण की भावना का अनुभव किया। पूजा-अर्चना के दौरान, छठ व्रतियों ने विशेष परिधान धारण किए और पवित्र नदी, तालाबों या घरों में स्थापित जलाशयों के किनारे दीप प्रज्वलित कर आरती की। इस दौरान व्रतियों ने सच्चे मन से भगवान सूर्यदेव की आराधना की और अपने मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु आशीर्वाद मांगा। छठ महापर्व के इस पवित्र अवसर पर श्रद्धालुओं में अपार उत्साह और उमंग का माहौल है।
पूजा स्थल पर श्रद्धालुओं की भीड़, भक्तिमय गीतों की गूंज और माहौल की पवित्रता ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में एकता, भाईचारे और सद्भावना का संदेश भी देता है। छठ महापर्व के तीसरे दिन यानी संध्या अर्घ्य की तैयारी के साथ ही, व्रतियों का कठिन तपस्या और उपवास अपने चरम पर पहुंचेगा। छठ व्रत करने वाली महिला ने कहा कि छठ महापर्व हमारे लिए केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, समर्पण और तपस्या का प्रतीक है। इस पावन अवसर पर हम भगवान सूर्यदेव और छठी मइया से परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु की कामना करते हैं। 36 घंटे का यह निर्जला उपवास हमारी श्रद्धा और भक्ति की परीक्षा है, जिसे हम पूरे मनोयोग से निभाते हैं। इस कठिन तपस्या में हमें समाज और परिवार का जो समर्थन और सहयोग मिलता है, वह हमारे विश्वास को और भी मजबूत करता है।