बजते डमरू, घंट, घड़ियाल और मृदंग… साउंड सिस्टम से निकलती धुनों के बीच जलती चिताएं। फिजाओं में रंग-गुलाल के अलावा उड़ता चिता-भस्म. मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती। चौबीसों घंटे चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता ही रहता है। चारों ओर पसरे मातम के बीच साल में एक दिन ऐसा आता है, जब महाश्मशान पर होली खेली जाती है। वे भी रंगों के अलावा चिता की भस्म से।अंतिम सत्य शव है और काशीवासी शव को शिव के रूप में पूजनीय मानते हैं। इसलिए शिव के साथ होली खेलने के लिए महाश्मशान पर अबीर-गुलाल के साथ ही चिता की राख से बेहतर कुछ और न मानकर काशीवासी महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलने आते हैं. इससे विदेशी सैलानी भी अछूते नहीं है. इस अनोखे नजारे को देखने के लिए विदेशों से भी काफी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
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