राजकुमार हम शर्मिंदा हैं तुम्हारे हत्यारे आजाद हैं। दरअसल शर्मिंदा तो जिला प्रशासन को, सोरेन, सरकार को और विपक्ष को होना चाहिए। क्या यही लोकतंत्र है? क्या जिला प्रशासन नाम मात्र की है ? विपक्ष ने भी कान में तेल डाल लिया है? या तीनों ने अपना ईमान धर्म बेच खाया है। घटना 16 फरवरी की है जब 10वी की परीक्षा दे रहे एक किशोर , राजकुमार दास की झड़प उसके ही साथियों से ,सरस्वती माता की मूर्ति विसर्जन के दौरान हो जाती है और चार , पांच लड़के मिलकर इतनी बेरहमी से उसे मारते हैं कि बेचारा क्षुब्ध हो कर अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर लेता है। सरायढेला, कोयाकुल्ली निवासी राजकुमार दास के पिता किशोर कुमार दास अपने बेटे के शव को लेकर प्रदर्शन करते हैं, एफआईआर दर्ज करवा कर प्रशासन से गुहार लगाते हैं, कैंडल मार्च निकालते हैं, मोहल्ले वाले और आस पास के लोग भी साथ आ जाते हैं,लेकिन क्या प्रशासन, क्या मानव अधिकार,क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती है । क्या एक आम आदमी को इंसाफ मिलना इतना कठिन हो गया है? कौन करेगा भरोसा लोकतंत्र पर ? प्रस्तुत है पंकज सिन्हा की रिपोर्ट धनबाद से।
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