गर्मी चरम पर है, लोगों को पीने के पानी से दो-चार होना पड़ रहा है।कहीं चापाकल का पानी सूख गया है तो कहीं कुएं का पानी नहीं दिख रहा है, ऐसे में ट्रेनों से आने जाने वाले लोगों को, जो या तो कम दूरी तय कर रहे हैं अथवा काफी दूरी तय कर रहे हैं उन्हें पानी के लिए दो चार होना पड़ रहा है। आप जब अपने घरों में ही इन गर्मी के दिनों में आधे घंटे में एक गिलास पानी का सेवन करते हैं तो ट्रेनों से सफर करने वाले उन लोगों को जो गर्म हवाओं के थपेड़ों को सहते हैं उन्हें कितना पानी की आवश्यकता पड़ जाती होगी इसे साफ समझा जा सकता है, लेकिन बात क्यूल रेलवे स्टेशन की करें तो यहां पानी की किल्लतो से ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों को दो-चार होना पड़ रहा है जिसे साफ जा सकता है और यह साफ नजर आता है। इन रेलवे स्टेशनों पर बोतल के पानी की बिक्री इन गर्मी के दिनों में बहुत ज्यादा है लेकिन जिनके पास इन बोतल बंद पानी को खरीदने के लिए पैसे नहीं है तो वह क्या करेंगे क्या वे इसके लिए किसी की पॉकेट को काट अपनी जरूरत पुरी करेंगे या यात्रा ही नहीं करेंगे। एक तरफ रेलवे यात्रा के लिए अपना शुल्क लेती है तो क्या अब उन्हें पानी के लिए भी यह शुल्क अलग से देना पड़ेगा। यहां यह नजारा साफ बताता है कि कहीं ना कहीं अधिकारियों की मनमानी है और ट्रेनों के आते ही नलों को बंद कर बोतलबंद पानी बेचने को लोगों को तैयार करते हैं, क्या यह किसी कमीशन का खेल है या फिर रेल सरकार को सिर्फ एक दिलासा देने का काम है कि मैं रेलवे में तमाम नियमों को मानते हुए लोगों को इस तरीके से पानी की किल्लतो से दो चार करवाने को तैयार हूं। सवाल उठता है कि अगर ट्रेनों में यात्रा करने वाले लोगों को इन नलों से इन गर्मियों में पानी नसीब नहीं हो रहा है तो इन नलों से पानी कब नसीब होगा। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कितने लोग और कैसे कैसे लोग इन नलों को दबाते हैं लेकिन उन नलों से पानी नहीं निकलता है, दूसरी तरफ बोतलबंद पानी की बोतल कुछ लोगों के पास नजर आता है जिससे ये पानी प्यास बुझाते हैं आखिर यह क्या है? क्या रेल सरकार को इस पर संज्ञान नहीं लेना चाहिए या फिर ऐसे लोगों को यात्रा करने के लिए टिकट संग पानी के लिए भी अपना जेब ढीला करना पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा।
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