हिंगलाज नगरी अतीत का सुखद अहसास.. भोपाल I राष्ट्रीय राजमार्ग क्र०12 पर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से जबलपुर की और 100 किo मीo की दूरी पर ऐतिहासिक नगर बाडी में स्थित “माॅ हिंगलाज शक्ति पीठ” बारना नदी (नर्मदापुराण में इसका नाम वरूणा नर्मदा की सहायक नदी के रूप में उल्लेख हैं) के उत्तरतट पर खाकी अखाडा के सिद्ध महन्तो की तपस्थली के समीप स्थित है। महन्त परम्परा का इतिहास “माँ हिंगलाज मन्दिर” स्थापना की पुष्टि करता है। खाकी अखाडा के महन्तगण सोरोजी की तीर्थयात्रा पर जाते रहे है। सोरोजी के पण्डा प्रेमनारायण के द्वारा लिखित रचना “पण्डावही” में इन महन्तों के नाम उल्लेखित है। “पण्डावही” के अनुसार ब्रह्मलीन “श्री 108 महन्त तुलसीदास” महन्त परम्परा की 12वीं पीढी के महन्त हुये। ये बाडी-मण्डल के महामण्डलेश्वर रहे। महंत कविता लिखते थे।”तुलसीमानस शतक” एवं “नर्मदा चालीसा” आपकी प्रसिद्ध रचनाएं है। मंहत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,समाजसेवी,संगीतकार,एवं इतिहासविद् थे।खाकी अखाडा के पूर्व संत-महन्त चमत्कारी एवं तपस्वी थे।खाकी अखाडा की मंहत परम्परा में चौथी पीढी के मंहत श्री भगवान दास महाराज “माँ हिंगलाज” को अग्नि स्वरूप में लेकर आये। वर्तमान में श्री रामजानकी मंदिर के पास में धूनी स्थान है वह स्थापना से 150 वर्ष तक अखण्ड धूनी चैतन्य रहने का स्थान हेेै। यह अग्नि ज्योति स्वरूप में मंहत जी बलूचिस्तान से (जो माॅ हिंगलाज की मूल शक्तिपीठ हैं) लेकर आये थे। श्री मंहत भगवानदास जी, श्री राम के उपासक एवं माॅ जगदम्बा के अनन्य भक्त थे, उनके मन में “माॅ हिंगलाज शक्तिपीठ” के दर्शन की लालसा उठी। महंत अपने दो शिष्यों को साथ लेकर पदयात्रा पर निकल पडे। मंहत लगभग 2 वर्षो तक पदयात्रा करते रहे। अचानक मंहतश्री संग्रहणी-रोग से ग्रषित हो गए, अपितु अपनी आराध्य माँ के दर्शनो की लालसा में पदयात्रा अनवरत जारी रही। एक दिन मंहत श्री अशक्त होकर बैठ गए और माॅ से प्रार्थना करने लगे कि- हे माॅ आपके दर्शनो के बिना में वापिस नहीं जाउगा,चाहे मुझे प्राण ही क्यो त्यागना ना पडे। एक माह तक शारीरिक अस्वस्थता की स्थिति में जंगली कंदमूल-फल का आहार लेकर अपने संकल्प पर अटल रहे। कहते है कि भगवान भक्तों की कठिन से कठिन परीक्षा लेते है। वर्षा के कारण एक दिन धूनी भी शांत हो गई, जिस दिन धूनी शांत हुई उसके दूसरे दिन प्रातःकाल एक भील कन्या उस रास्ते से अग्नि लेकर निकली और महंत से पूछने लगी कि, बाबा आपकी धूनी में तो अग्नि ही नही है,आप क्यों बैठे हो। बाबा ने अपनी व्यथा उस कन्या को सुनाई। कन्या उन्हे अग्नि देकर अपने मार्ग से आगे बढकर अंतर्ध्यान हो गई। मंहतश्री ने उस अग्नि से धूनी चैतन्य की ओर मन ही मन “माॅ हिंगलाज” से प्रार्थना करने लगे। रात्रि में उनको स्वप्न आया कि भक्त अपने स्थान वापिस लौट जाओ। मैने तुम्हे दर्शन दे दिये हैं। मेरे द्वारा दी गई अग्नि को अखण्ड धूनी के रूप में स्थापित कर “हिंगलाज मंदिर” के रूप में स्थापना कर दो। इस प्रकार बाडी नगर में “माॅ हिंगलाज देवी मंदिर” जगदम्बे की “51वी उपशक्ति पीठ” के रूप में स्थापित हुआ। माॅ का चमत्कार माँ हिंगलाज के चमत्कारों की घटनाएं तो अनेक है पर एक घटना का संबंध “खाकी अखाडा” से जुडा है, भोपाल रियासत की बेगम कुदसिया (1819) के कार्यकाल से है। खाकी अखाडे में 50-60 साधू संत स्थायी रूप से रहते थे। उनके भोजन की व्यवस्था मंहत जी की “रम्मत धर्मसभा” की आय से होती थी। माॅ हिंगलाज के दर्शनार्थिंयो एवं दानदाताओं का इसमें सहयोग रहता था। यह घटना सन् 1820-25 के आसपास की है, उस समय नबाब की बेगम कुदसिया का बाडी में केम्प था। “श्री रामजानकी मंदिर” खाकी अखाडे में प्रातः सुप्रभात आरती “जागिये कृपानिधान” एवं सांयकालीन आरती भी “गौरीगायन कौन दिशा से आये, पवनसुत तीव्र ध्वनि” शंख,घंटा,घडियाल एवं नौबत वाद्ययन्त्रों के साथ होती थी। बेगम कुदसिया ने जब यह शोर सुबह-शाम सुना तो बहुत ही क्रोधित हुई ओर मंहत जी को हुक्म भेजा कि जब तक बाड़ी में हमारा केम्प है,यहाॅ पर शोर-शराबा नही होना चाहिये। हमारी नमाज में खलल पडता है। मंहत जी ने हुक्म मानने से इन्कार कर दिया और कहा की भगवान की आरती इसी प्रकार होती रहेगी उसका परिणाम कुछ भी हो। मंहत जी का इन्कार सुनकर बेगम बहुत ही क्रोधित हुई। बेगम पहले ही मंहतजी के चमत्कारों एवं साधना के बारे मे सुन चुकी थी इसलिए उसने परीक्षा लेने के लिए एक थाल में मांस को कपडे से ढककर चार प्यादों सेवक के साथ भोग लगाने मन्दिर भेज दिया जैसे ही प्यादे सेवक मंदिर परिसर के अन्दर आये। महंत समझ गए। मंहत जी ने एक सेवक भेज कर उसे मुख्यद्वार पर ही रूकवा दिया और एक शिष्य को आज्ञा दी कि अखण्डधूनी के पास जो कमण्डल रखा है उसे लेकर थाल पर जल छिडक दो और बेगम के सेवको से कह दो कि भोग लग गया हैं। बेगम साहिबा को भोग प्रसाद प्रस्तुत कर दो। कपडा बेगम के सामने ही हटाना। प्यादे(सेवक) वह थाल लेकर वापस बेगम के पास केम्प में पहूचे और बेगम के सामने थाल रखकर सब किस्सा बयान किया जब बेगम ने थाल का कपडा हटाया तो, उसमें मांस के स्थान पर प्रसाद स्वरूप विभिन्न प्रकार की मिठाईयाॅ मिली। बेगम को आश्चर्य हुआ और महन्त जी से मिलने मंदिर पहुची और कहा कि महाराज मैं आपकी खिदमत करना चाहती हूॅ आप मुझे हुक्म दीजिये आपकी क्या खिदमत करूॅ। इसके बाद बेगम “माँ हिंगलाज” के चमत्कार से प्रभावित हुई। इसके उपरांत बेगम ने मंदिर के नाम जागीर दान दी। Youtube Subscription Link : https://www.youtube.com/channel/UCWEx… Facebook Page : https://www.facebook.com/NewZIndia24 Facebook Group : https://www.facebook.com/groups/newzi… Instagram : https://www.instagram.com/newzindia24… Twitter : https://twitter.com/newzIndia24 Website : https://www.newzindia24.in
Posted inUncategorized