यदि अब भी नही जागे तो शायद जागने के लायक नहीं रहोगे । जी हां झरिया जो कि पूरे देश को रौशन करती है, ईंधन निर्यात करती है जिसे कोयले की राजधानी कही जाती है आज अपने अस्तित्व को तरस रही है, यहां के लोग घुट घुट कर मरने को मजबूर हैं । मौका था विश्व पर्यावरण दिवस का जब कुछ लोगो ने एक झांकी के माध्यम से अपने दर्द झरिया वाशियो के सामने प्रस्तुत किया यहां की वायु इतनी दूषित हो गई है की स्वास लेना भी कठिन है ।बड़े बड़े उद्योगपतियों ने चारो ओर उत्खनन करके इस नगरी को एक टापू में बदल दिया है
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