जतारा नगर में विराजमान परम पूज्य आचार्य विमर्श सागर जी महाराज ने प्रातः कालीन बेला में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा- संसारी जीव अज्ञानता के कारण संसार में दुःखों को ही भोगता रहता है, इस ‘अज्ञानता के कारण ही अपने आत्मीय सुख को भूलकर क्षणिक सुख-खाता के पीछे भागता रहता है, अब प्रश्न होता है कि हम इस अज्ञानता को दूर कैसे करें ? क्या उपाय करें? किसका आश्रय करें ? ध्यान रखना अज्ञानता से छूटने के लिए सर्वप्रथम हमें सच्चे देव (भगवान) का स्वरूप जान लेना अत्यावश्यक है क्योंकि सच्चे देव अर्थात् वीतरागी भगवान ही अज्ञानता का पूर्णरूपेण नाश करके परिपूर्ण, संपूर्ण ज्ञान को प्राप्त होते हैं। बन्धुओ! यदि हमें भी संसार के दुःखों की कारण भूत अज्ञानता का नाश करना है तो पूर्ण ज्ञान वान वीतरागी सर्वज्ञ भगवान की शरण को अवश्य ही प्राप्त करना होगा, यही अज्ञानता नाश करने के लिए प्रथम कदम है । सच्चे धर्मात्मा होने का प्रथम लक्षण है- श्रद्धा, विश्वास अर्थात सम्यग्दर्शनका होना, वह श्रद्धा-विश्वास तीनों लोकों के, तिलक स्वरूप, तीर्थंकर जिनेन्द्र भगवान के प्रति होना चाहिए ।प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओं सम्यग्दर्शन ही तीनों लोकों में और तीनों कालों में सर्वश्रेष्ठ है यदि ऐसा विश्वास- सम्यग्दर्शन अंतरंग में प्रगट हो जाए तो कभी अपनी श्रद्धा को मलिन मत होने देना। “आपने उज्ज्वल – धवल शर्ट पहनी हो यदि उसमें एक छोटा-सा भी दाग लग जाए और आप उसे नजरअंदाज करते रहें,ऐसे ही छोटे-छोटे दाग निरंतर लगते रहें, भले ही दाग छोटे हों लेकिन एक अवस्था वह आएगी जब शर्ट परिपूर्ण मलिन हो जाएगी, ठीक ऐसे ही बन्धुओं ! आपकी श्रद्धा- सम्यदर्शन में मलिनता आती रहे और आप उसे दूर करने का प्रयास न करें तो एक दिन आपकी श्रद्धा, आपका सम्यग्दर्शन नष्ट हो जाएगा ।’हम सभी जानते हैं कि जब महाभारत के समय पाण्डव और कौरव नारायण श्रीकृष्ण के पास पहुँचे, तब कौरवों ने नारायण श्री कृष्ण की सेना को मांग लिया किन्तु पाण्डवों ने स्वयं श्री कृष्ण को ही मांग लिया था। बन्धुओ! पाण्डव पाँच थे और श्री कृष्ण एक थे, लेकिन यह हमारा परम सौभाग्य- परम पुण्य है कि इस संसार में हम अकेले ही है और हमें आशीर्वाद प्रदान करने के लिए पाँच-पाँच परम परमेष्ठी हमें प्राप्त होते हैं। कभी भी अपने जीवन में पंच परमेष्ठी की श्रद्धा को कम मत होने देना। क्योंकि ये पंच परमेष्ठी ही तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ हैं और हमें उत्तम गति प्राप्त कराने में सर्वश्रेष्ठ कारण हैं। जैन समाज जतारा उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि जैनाचार्य श्री विमर्श सागर जी मुनिराज की जन्म भूमि धर्मनगरी जतारा में चल रही है चतुर्थ कालीन प्रथम तीर्थकर आदिनाथ भगवान की महा आराधना, नगरवासी एवं गुरु भक्त कर रहे हैं सातिशय पुण्य का अर्जन, आज के भक्तामर महामंडल विधान करने का सौभाग्य अंबाला हरियाणा निवासी अतुल,रेखा,अभिषेक,मीना, कविश,संजय, मोहित, साक्षी,सक्षम,अविशा जैन परिवार को प्राप्त हुआ। धर्म सभा में महेंद्र टांनगा ,पवन मोदी, राजीव माची,राजेंद्र राज, सलिल जैन नाजा कल्लू सगरबारा सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे ।
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