औरंगाबाद में ट्रेन का कंफ र्म टिकट पाना आज भी मैराथन जीतने के समान है। औरंगाबाद में धरातल पर यह हकीकत तब देखने को मिली जब शहर में कलेक्ट्रेट स्थित रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर कुछ ऐसे लोग मिले जो काउंटर खुलते ही तत्काल में भी कंफर्म टिकट पाने के लिए आधी रात को ही आ गए थे। पूरी रात ये टिकट काउंटर खुलने का इंतजार करते रहे। काउंटर खुलते ही टूट पड़े, फिर भी कंफर्म टिकट नही मिला। ऐसे लोगों में कुटुम्बा प्रखंड के चनकप के विवेक पांडेय ने बताया कि वें दिल्ली में काम करते हैं। वही शहर के फिरोज आलम ने बताया कि वें मुंबई में काम करते है। दोनो ही क्रमशः होली और शब ए बरात पर घर आएं थे। दोनों की बाते एक ही है। दोनों ने कहा कि त्योहार खत्म होने के बाद वापसी का कंफर्म टिकट पाने के लिए रात में ही यहां आ गए। सुबह में जब काउंटर खुला तो तत्काल में भी उन्हे कंफर्म टिकट नही मिला। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी कि भारतीय रेल में सफर करना आसान काम नही है। जिस यात्री को अपना कंफर्म टिकट मिल गया, समझिए वह जंग जीतने में कामयाब हो गया क्योंकि वेटिंग कंफर्म होने की कोई गारंटी नहीं है। ऐसी ही जंग जीतने यानी सुबह के दस बजे काउंटर खुलने पर तत्काल टिकट लेने के लिए ये लोग रात के दस बजे से ही कतार में लग रहे हैं ताकि उन्हें कंफर्म टिकट मिले और वे अपने गंतव्य को जा सके लेकिन यह भी उनके भाग्य पर निर्भर करता है कि उन्हें तत्काल में भी कंफर्म टिकट मिलेगा या नही, कह पाना बेहद मुश्किल है। टिकट काउंटर पर पहुंचे कुछ लोगों ने यह भी कहा कि कंफर्म टिकट पाने के लिए वें दो दिनों से टिकट काउंटर का चक्कर लगा रहे है। यह कहानी सिर्फ़ औरंगाबाद और यहां के दो लोगो की नही है बल्कि यह कहानी देश के हर छोटे-बड़े शहर और हर उस इंसान की है, जिसे कंफर्म टिकट चाहिए और कंफर्म टिकट के लिए ऐसी ही मारामारी हर जगह होती है। ऐसे में कंफर्म टिकट चाहनेवालों ने रेल मंत्रालय से यह आग्रह किया है कि जितनी सीट हो, उतनी ही टिकट काटे जाएं ताकि लोगों को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक प्रताड़ना का शिकार नही होना पड़े।
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