वैदिक ज्योतिष में सूर्य और शुक्र दोनों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। सूर्य को पाप ग्रह की संज्ञा दी गई है लेकिन उसके बाद भी इन्हें शुभ ही माना जाता है, वहीं दूसरी ओर शुक्र को स्त्री ग्रह की संज्ञा दी गई और भौतिक सुख का कारक कहा गया लेकिन उसके बाद भी अक्सर यह देखा जाता है कि सूर्य-शुक्र की युति पुरुष के जीवन में स्त्री सुख की, वहीं स्त्री के जीवन में यौन सुख में कमी करने वाली होती है ! आखिर ऐसा क्यों होता है ?
दरअसल सूर्य एक अग्नि तत्व ग्रह है और आत्मा का कारक भी, वहीं शुक्र बेहद सौम्य ग्रह है। ऐसे में सूर्य की ऊर्जा को सहन करना आसान नहीं होता है। वहीं शुक्र सूर्य की युति जब 5 अंश के भीतर होती है तो ग्रह सूर्य की अग्नि से जल जाता है और अपना फल प्रकट नहीं करता जिसे ज्योतिष में अस्त होना कहा जाता है।
एक तरह सूर्य जीवन में उच्च पद और ऊर्जा के लिए ज़रूरी है वही शुक्र जल तत्व कारक है और भावनाओं और संतति के लिए ये ज़रूरी है। ऐसे में जैसे ही इन दोनों का योग बनता है जीवन में उथल पुथल मच जाती है। चूंकि जल और अग्नि का कोई मेल नहीं है इसलिए जब पुरुष की कुंडली में ये योग बनता है तो वो स्त्री से शुभ फल प्राप्त नहीं करता। पुरुष की कुंडली में शुक्र स्त्री का कारक है इसलिए अक्सर यह देखा गया है कि जिन पुरुषों की कुंडली में यह युति होती है वो अक्सर वैवाहिक जीवन में तनाव महसूस करते है।
स्त्री के लिए शुक्र सौंदर्य और यौन इच्छा का कारक होता है और ऐसे में सूर्य शुक्र युति से स्त्री यौन सुख प्राप्त नहीं कर पाती है। वो अपने पति से संतुष्ट नहीं होती। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य शुक्र की युति कभी कभी चमत्कारिक परिणाम देती है। ऐसा व्यक्ति सुन्दर और गुणी होता है। उसके पास जो भी सलाह लेने आता है वो सफल हो जाता है। ऐसा व्यक्ति धार्मिक काम भी बढ़ चढ़कर करता है। यह युति जातक को उत्तम अभिनेता भी बना सकती है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर यह युति अच्छे फल नहीं देती है।
अगर सूर्य शुक्र की युति पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो जातक दोहरे चरित्र वाला होता है। ऐसा व्यक्ति दिखने में कुछ और हकीकत में कुछ और होता है। शराब और जुए की लत भी ऐसे लोगों में देखी जाती है। शुक्र अगर सूर्य के साथ पाप कर्तरी योग में हो तो ऐसे लोग प्रकृति के विरुद्ध जाकर यौन संबंध बनाते है। ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण होता है।